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नेकी की दीवार

एक दिन एक महिला ने अपनी किचन से सभी पुराने बर्तन निकाले। पुराने डिब्बे, प्लास्टिक के डिब्बे,पुराने डोंगे,कटोरियां,प्याले और थालियां आदि। सब कुछ काफी पुराना हो चुका था। फिर सभी पुराने बर्तन उसने एक कोने में रख दिए और बाजार से नए लाए हुए बर्तन करीने से रखकर सजा दिए। बड़ा ही पॉश लग रहा था अब उसका किचन। फिर वो सोचने लगी कि अब ये पुराना सामान भंगारवाले‌ को दे दिया जाए तो समझो हो गया काम ,साथ ही सिरदर्द भी ख़तम औऱ सफाई का सफाई भी हो जाएगी । इतने में उस महिला की कामवाली आ गई। दुपट्टा खोंसकर वो फर्श साफ करने ही वाली थी कि उसकी नजर कोने में पड़े हुए पुराने बर्तनों पर गई और बोली- बाप रे! मैडम आज इतने सारे बर्तन घिसने होंगे क्या? और फिर उसका चेहरा जरा तनावग्रस्त हो गया। महिला बोली-अरी नहीं!ये सब तो भंगारवाले को देने हैं...सब बेकार हैं मेरे लिए । कामवाली ने जब ये सुना तो उसकी आंखें एक आशा से चमक उठीं और फिर चहक कर बोली- मैडम! अगर आपको ऐतराज ना हो तो ये एक पतीला मैं ले लूं?(साथ ही साथ उसकी आंखों के सामने उसके घर में पड़ा हुआ उसका इकलौता टूटा पतीला नजर आ रहा था) महिला बोली- अरी एक क्यों! जितने भी उस

श्रावण मास

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काफी दिन हो गए कुछ लिखा नहीं तो चलिए शुरू करते हैं, आज तो सुबह करीब ५ बजे से ही बारिश हो रही और अभी ८ बजने वाले है और अभी तक हो ही रही है, पता नहीं क्यों जब भी ये बारिश शुरू होती तो मैं अकेले बैठ कर इसे देखने की कोशिश करता हूँ, बारिश की बूदों को ध्यान से देखता और ऊपर तक देखने की कोशिश करता जहां तक ये गिरते हुए दिखना शुरू होती है और फिर मेरा मन लिखने को जैसे मचल उठता है, मैंने जो भी अब तक इसमें लिखा है लगभग सभी में बारिश होते हुए ही लिखा है, मुझे बारिश बहुत ज्यादा पसंद है, इस समय तो वैसे भी घर पर हूँ तो अगर दिन में बारिश हुई तो मैं भीगने से नहीं चूकता, हां थोड़ा माँ से डांट खाने को मिलती है कि बीमार हो जाओगे पर क्या करें इस पर यही कह सकते 'दिल है कि मानता नहीं' खैर ये तो रहा बारिश का हाल.



वैसे आजकल दिन बहुत अच्छे कट रहे और खाने के लिए चीजे भी बहुत मिल रही जैसे आम, क्यों कि इसी का मौसम चल रहा और घर पर दो अमरुद के पेड़ है और इस समय दोनों पेड़ पके हुए फलों से लदे हुए हैं तो रोज खाने को मिलता, तस्वीरें तो मैं आपके साथ शेयर करूँगा और साथ में मैंने कुछ तस्वीरें और भी ली थी बारिश की और कुछ बादलों की, काफी दिन से मौसम ही इतना सुहावना बन रहा तो मैं अपनी इस कोशिश में भी कामयाब हो जा रहा, अभी तो लगभग एक सप्ताह से ज्यादा ही हो गया सूरज शायद ही दिखा हो, सुबह-शाम सिर्फ बादल ही बादल और रिमझिम-रिमझिम बारिश और हो भी क्यों न महीना भी तो सावन का है, इस महीने को भोलेनाथ यानि शिव भगवान को मानते है और लोग दर्शन के लिए कावंड लेकर जाते भी है, पर इस बार कोरोना जैसी महामारी कि वजह से बंद है...तो बस चलो यर आज कि टाइपिंग यही खत्म करते हैं और शुरू करते हैं आज के दिन कि कार्यवाही..

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