एक दिन एक महिला ने अपनी किचन से सभी पुराने बर्तन निकाले। पुराने डिब्बे, प्लास्टिक के डिब्बे,पुराने डोंगे,कटोरियां,प्याले और थालियां आदि। सब कुछ काफी पुराना हो चुका था। फिर सभी पुराने बर्तन उसने एक कोने में रख दिए और बाजार से नए लाए हुए बर्तन करीने से रखकर सजा दिए। बड़ा ही पॉश लग रहा था अब उसका किचन। फिर वो सोचने लगी कि अब ये पुराना सामान भंगारवाले को दे दिया जाए तो समझो हो गया काम ,साथ ही सिरदर्द भी ख़तम औऱ सफाई का सफाई भी हो जाएगी । इतने में उस महिला की कामवाली आ गई। दुपट्टा खोंसकर वो फर्श साफ करने ही वाली थी कि उसकी नजर कोने में पड़े हुए पुराने बर्तनों पर गई और बोली- बाप रे! मैडम आज इतने सारे बर्तन घिसने होंगे क्या? और फिर उसका चेहरा जरा तनावग्रस्त हो गया। महिला बोली-अरी नहीं!ये सब तो भंगारवाले को देने हैं...सब बेकार हैं मेरे लिए । कामवाली ने जब ये सुना तो उसकी आंखें एक आशा से चमक उठीं और फिर चहक कर बोली- मैडम! अगर आपको ऐतराज ना हो तो ये एक पतीला मैं ले लूं?(साथ ही साथ उसकी आंखों के सामने उसके घर में पड़ा हुआ उसका इकलौता टूटा पतीला नजर आ रहा था) महिला बोली- अरी एक क्यों! जितने भी उस
गांव का वातावरण बहुत ही साफ स्वच्छ और शांत होता हैं क्यों की यहां प्रदूषण करने वाले ज्यादा साधन नहीं होते शहरों की तरह | लोग सुबह ही लगभग चार बजे ही उठ जाते है और अपने दिनचर्या में लग जाते हैं, कोई सुबह खेत की तरफ तो कोई दूध काढ़ रहा हैं तो कोई खाने की तैयारी में लगा है, गांव में सभी लोग सुबह सुबह ही अपने सारे कामों को खत्म करने में लगे रहते हैं और सुबह एक दूसरे से मिलने पर 'राम-राम जी' जय राम, हरे कृष्णा , इस तरह बोलते. सुनकर बहुत ही अच्छा लगता है | मै अपने गांव आया इस लॉकडाउन में और १५ दिन तक एक ही रूम में रहने के बाद घर वालों और लोगों से मिलना या बात करना शुरू किया, गांव में रोज सुबह ४ बजे ही नींद खुल जाती है वो भी बिना अलार्म के ही, ४ बजे का अलार्म और उससे पहले उठ कर बंद कर देता कहीं बजने न लगे | गांव में सुबह से ही मजा आता है, बिजली की परेशानी होती है गांव में, बाकि सब अच्छा, सुबह-सुबह उठ कर २ किलोमीटर दौड़ लगाना और व्यायाम करने का मजा ही अलग है वो भी मई के महीने में ठंडी-ठंडी हवा और दूर-दूर तक साफ नजारा पेड पौधों से भरा हुआ, जैसे मन तरसा हुआ हो शहर की सड़को और बिल्डिगों को देखकर |
मै रोज अपना फ़ोन लेकर जाता ऐसे नजारे को कैमरे में कैद करने के लिए, किसी सुबह ठंडी हवा के साथ हल्की-हल्की सी बारिश मौसम का रुख ही बदल देती है, जी करता बादल को पकड़ कर रोक लू और भीगूँ जी भर कर, यहां बारिश होने पर लोग बचते नहीं भीगने से बल्कि मौका देख कर कोशिश करते भीगने की, मै तो जरूर, आज सुबह एक वीडियो रिकॉर्ड किया आपके साथ शेयर कर रहा,..
नीलगाय के बारे में शायद आप जानते हो ये गांव में अप्रैल से जुलाई या अगस्त के महीनो तक दिखाई देते, ये अपने घरो से बाहर आते और फल सब्जिओ की तलाश में भटकते जैसे तरबूज और खीरा, ककड़ी, खरबूजा, लेकिन कभी-कभी इनको मुसीबतों का सामना भी करना पड़ता जो आपको इस वीडियो में देखने को मिलेगा पर ये भागने में निपुड़ होते, इस तरह की सब्जियाँ अप्रैल से जुलाई की महीनो में गावों में ज्यादातर देखने को मिलती इसीलिए कुछ इसी तरह की जानवर जैसे १२ सिंह वाले, गावों की तरफ आते, ये सब्जियाँ और फल बीघे-बीघे बोई जाती और किसान इसकी रखवाली भी करते फिर चाहे धूप हो छाँव या फिर गर्म हवा की लू,खेत के पास कुछ छोटी-छोटी कुटी बनाते है ताकि रखवाली कर सकें, किसान घर से खाना खा-पीकर, बोतल में पानी और सर पर एक रुमाल (गमछा), लेकर निकल पड़ते और कहीं किसी पेड़ की नीचे या अपने हाथो बनाई कुटी में बैठते खेत की रखवाली करने |
Comments
Post a Comment